Posts

Showing posts from August, 2014

पागल या संत

अाज राह में कुछ अजनबीयों से मुलाकात हुई। एक पन्द्रह-सोलह साल की उम्र का बालक था/ मध्यम कद, चकोर चहरा, अौर बडी गहरी अाँखें। अौर एक कार में बैठे एक पुरुष तथा एक युवती। बालक सडक के कोने पर शांत, खडा था। उस कार को उसी कोने से मुडना था, वह बालक कार के एकदम सामने था, सडक व्यस्त थी, या तो बालक अपनी जगह से हठे, अन्यथा कार उसको चोट पहुँचा सकती थी। कार वालों का पहला र्कत्य तो अाम था। उन्होने होर्न बजाया, उस बालक को हटने का इशारा भी किया। पर इसके बाद जो घटा वह कभी-कभी ही घटता है। बालक बिना झिझके वहीं खडा रहा। उसकी अाँखों ने बिना भय के, पहले पुरुष को देखा, पुरुष ने बिना क्रोध, बिना झुंझलाहट  उसे वापस देखा, वहाँ कोई भाव ना पा उसने युवती को देखा, युवती भावों का बवंडर थी। पहले तो युवती के मन में अाया की ये पागल है, उस बालक ने अोर गहरायी से युवती को देखा। इस दौरान, पुरुष ने कार अौर अागे बढाई, शायद वह भी बालक का प्रत्युत्तर देखना चाहता था। बालक बिल्कुल विचलीत नहीं हुअा। पर युवती इस भय से भर गई की कहीं बालक को चोट ना लग जाए, उसका पुरा अास्तित्व चाहा रहा था कि कार पिछे कर ली जाए, पुरुष ने कार पिछे की